मैं हूँ एक पेड़ खड़ा बीच सड़क
चारों तरफ मेरे हैं चलती गाड़ी
और सर पर है एक खुला आसमान
आता है पतझड़ या हो छाई बसंत
मेरे यहाँ खड़े रहने का नहीं कोई अंत
कितने सावन देखे मैंने कितनी देखी फुआर
कितनी गर्मी झेली मैंने कितनी सर्दी भरमार
फिर भी मैं रहता हूँ यहाँ खड़ा अकेला
चरों तरफ मेरे है लोगों का मेला