कुछ लिखने का मन नहीं है-हिंदी कविता

कुछ लिखने का मन नहीं है..

फिर भी गुस्ताखी करती हूँ..

सोच का बर्तन नहीं है..

फिर भी शब्द भरती हूँ..

कुछ जाना है.. कुछ पहचाना है..

फिर भी विवरण भरती हूँ..

आप कहें तो एक बार क्या ..

१००  बार फिर वही दोहराती हूँ..

जो हुआ अच्छा अगर. . बुरे वक़्त में उसे याद कर..

मुस्कुराहट भरती हूँ..

और हुआ है बुरा अगर.. तो अच्छे वक़्त  के आने का..

इंतजार मैं मुस्कुरा के करती हूँ..

मुस्कुराने में है भला..

रो कर किसी को क्या मिला..

आप ने ये जो भी अभी पढ़ा..

इसको पढ़ के आपके चेहरे पर भी एक हंसी की तमन्ना  करती हूँ ..

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