तेरे खंजर से हो कर घायल.. कौन न बनाना चाहेगा तुझे क़ातिल
चोट खा के तुझसे ये मेरा दिल, पा ही लेगा एक दिन अपनी मंज़िल |
तू यूँ ही मुस्कुराया करे हर पल.. चाहे हो या न हो तू मुझे हासिल |
सजी रहे यूँ ही तेरी हर महफ़िल, और दीदार तेरा होता रहे मेरे क़ातिल |