दिल की उमंगो को पतंगों सा उड़ने दो
हाथों के छालों को मौजों से सँभालने दो
जहाँ ले चले मन बांवरा, बहते जाओ तुम
जहाँ मिले मन का तारा, उड़ चलो उस आस्मां में
छोटी से अंखियो में, ख्वाबों को पलने दो
बहके हुए क़दमों को खुद से सँभालने दो
१. चार दिन की है ये जिंदगानी
कभी गरम रेत, तो कभी ठंडा पानी
आग के शोलों को, बर्फ सा पिघलने दो
दिल की तरंगों को थोड़ा मचलने दो
दिल की उमंगो को पतंगों सा उड़ने दो
२. कभी दूर से पुकारो, कभी पास आके मुस्कुराओ
होठो की हँसी को, दाँतों तले मत दबाओ
दिल की बातों को, दिल से यूं करलो कि
दिल में है क्या दिल से, दिल को समझने दो
दिल की उमंगो को पतंगों सा उड़ने दो
(अनुष्का )
Awesome poem..it reminds me of “rocket singh” song – ‘Pankhon ko hawa zara si lagne do’.
Thanks so much. I am thankful to you for the appreciation. 🙂